The Rise of Napoleon नेपोलियन का उदय

The Rise of Napoleon ( नेपोलियन का उदय )

अनुक्रम (INDEX)

     3.2.1 नेपोलियन : परिचय (Introduction)
     3.2.2 उदय की परिस्थियाँ (Circumstances)
     3.2.3 नेपोलियन के कार्य / सुधार (Reforms)
     3.2.4 महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System)
     3.2.5 नेपोलियन का पतन (Fall of Napoleon)
      3.2.6 वियना कांग्रेस / यूरोपीय व्यवस्था 1815


3.2.1 नेपोलियन : परिचय (Introduction)

         नेपोलियन बोनापार्ट (15 अगस्त 1769 - 5 मई 1821) फ्रान्स की क्रान्ति में सेनापति, 11 नवम्बर 1799 से 18 मई 1804 तक प्रथम कांसल के रूप में शासक और 18 मई 1804 से 6 अप्रैल 1814 तक नेपोलियन I के नाम से सम्राट रहा। वह पुनः 20 मार्च से 22 जून 1815 में सम्राट बना। वह यूरोप के अन्य कई क्षेत्रों का भी शासक था।
        इतिहास में नेपोलियन विश्व के सबसे महान सेनापतियों में गिना जाता है। उसने एक फ्रांस में एक नयी विधि संहिता लागू की जिसे नेपोलियन की संहिता कहा जाता है।
        वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से एक था। उसके सामने कोई रुक नहीं पा रहा था। जब तक कि उसने 1812 में रूस पर आक्रमण नहीं किया, जहां सर्दी और वातावरण से उसकी सेना को बहुत क्षति पहुँची। 18 जून 1815 वॉटरलू के युद्ध में पराजय के पश्चात अंग्रज़ों ने उसे अन्ध महासागर के दूर द्वीप सेंट हेलेना में बन्दी बना दिया। छः वर्षों के अन्त में वहाँ उसकी मृत्यु हो गई। इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज़ों ने उसे संखिया (आर्सीनिक) का विष देकर मार डाला।


3.2.2 उदय की परिस्थियाँ (Circumstances)

फ्रांस की राज्य क्रांति 1789 :
  • समानता, स्वतन्त्रता एवं बंधुता, राजतंत्र का अंत, विशेषाधिकारों की समाप्ति
  • योग्यता पर बल Þ नेपोलियन जैसे सामान्य व्यक्ति के लिए भी आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ
डायरेक्टरी का शासन एवं क्रांति के दौरान फैली अव्यवस्था :
  • मूल्य वृद्धि, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि बढ़े, जनता असंतुष्ठ, कुशल प्रशासक एवं नेतृत्व की तलाश
  • पूर्व सैन्य अभियानों में नेपोलियन की सफलता, क्रांति के शिशु के रूप में जनता द्वारा स्वीकृति
मध्यवर्ग के हित :
  • मध्यवर्ग को स्थायित्व, धनी पूंजीपति वर्ग से कमजोर वर्ग को सुरक्षा एवं सहायता, फ्रांस से भागे पादरी एवं कुलीन को सहसम्मान वापसी की आकांक्षा थी, उन्होने नेपोलियन के तानाशाही को भी सहर्ष स्वीकार किया
3.2.3 नेपोलियन के कार्य / सुधार (Reforms)

“मुझे मेरे 40 युद्धों के लिए नहीं अपितु विधि सुधारों के लिए याद रखा जाएगा।” - नेपोलियन
संवैधानिक सुधार :
  • 1799 में सत्ता पर अधिकार के बाद क्रांतिकाल का चौथा संविधान बनाकर लागू किया
  • फ्रांस में गणतन्त्र एवं कौंसल शासन पद्धति लागू, नेपोलियन प्रथम कौंसल, समस्त शक्ति कौंसल में
आर्थिक सुधार :
  • महाद्वीपीय व्यवस्था - शत्रु देशों की आर्थिक घेराबंदी
  • कर सुधार - सरल एवं एकरूप कर प्रणाली, कर वसूली सख्त
  • प्रशासनिक खर्चों में मितव्ययिता, सेना व्यय विजित राष्ट्रों पर थोपा
  • राष्ट्रीय बैंक - बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना, घूसख़ोरी, सट्टेबाजी पर नियंत्रण
  • उद्योग एवं व्यापार - व्यावसायिक शिक्षा, सड़कें आदि
  • कृषि विकास – बंजर भूमि को उपजाऊ  बनाने का प्रयास
कानूनी सुधार :
  • पुरातन व्यवस्था – असियां रेजिम, जिसमें एकरूपता का अभाव था का अंत
  • नेपोलियन की पाँच संहिताएँ (नेपोलियन कोड) - दीवानी संहिता, दीवानी दंड प्रक्रिया, आपराधिक दंड प्रक्रिया, दंड विधान तथा व्यापारिक संहिता। विधि की श्रेष्ठता एवं विधि का समक्ष समता
  • पारिवारिक अनुशासन - पुरुष परिवार का मुखिया एवं संपत्ति किसी भी व्यक्ति को देने को स्वतंत्र, स्त्री को पुरुष तथा संतानों को पिता के अधीन माना, सिविल विवाह को मान्यता, तलाक के नियम कठोर
शिक्षा में सुधार :
  • प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च तीन वर्गों में शिक्षा का विभाजन, यूनिवर्सटे नामक संस्था द्वारा समन्वय
  • सत्रह की निश्चितता, पाठ्यक्रम का निर्धारण, शिक्षक प्रशिक्षण हेतु नॉर्मल की स्थापना एवं राष्ट्रियता के प्रसार हेतु लाइसिज की स्थापना
  • इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रांस – उच्चतर अनुसंधान हेतु गठित संस्था
  • सीमा – स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं, धर्म संस्थाओं को ज़िम्मेदारी दी
धार्मिक सुधार : कोंकोर्दा समझौता 1801
  • क्रांतिकाल में राज्य विरोधी बने पोप व चर्च को राज्य के अंग के रूप में पुनः समाहित किया
  • पोप ने क्रांति के दौरान जब्त संपत्ति पर दावा छोड़ दिया, बदले में कैथोलिक धर्म को राज्य के बहुसंख्यक जनता का धर्म स्वीकार किया गया
  • पादरी वर्ग की नियुक्ति एवं वेतन राज्य द्वारा, परंतु उन्हें दीक्षा पोप द्वारा दिया जाना तय हुआ, ग्रीगेरियन कैलेंडर को फिर से लागू किया गया
प्रशासनिक सुधार :
  • अति केंद्रीयकृत प्रशासनिक व्यवस्था का निर्माण, स्थानीय शासन को अस्वीकार किया
  • फ्रांस की क्रांति के प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण का विरोधी – क्रांति विरोधी स्वरूप
कृत्रिम कुलीन वर्ग :
  • समर्थकों का कृत्रिम कुलीन वर्ग, राष्ट्रीय सम्मान के रूप में उपाधि, क्रांति विरोधी स्वरूप
3.2.4 महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System)

  • महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) या महाद्वीपीय नाकाबन्दी (Continental Blockade) युद्धों के समय ब्रिटेन के विरुद्ध संघर्ष में नेपोलियन की आर्थिक नाकेबंदी (इंग्लैण्ड से व्यापार = नेपोलियन से युद्ध) थी।
  • नेपालियन के साम्राज्यवादी विस्तार में सबसे बड़ी बाधा ब्रिटेन था और यूरोप में ब्रिटेन ही ऐसी शक्ति था जिसे नेपोलियन नहीं हरा सका था क्योंकि ब्रिटेन की नौसैनिक शक्ति फ्रांस के मुकाबले श्रेष्ठ थी। अतः नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को परास्त करने के लिए उसे आर्थिक दृष्टि से पंगु बना देने की नीति अपनाई। वस्तुतः उसने इंग्लैण्ड के विरूद्ध आर्थिक युद्ध का सहारा लिया और इसी क्रम में उसने महाद्वीपीय व्यवस्था को अपनाया।
  • ब्रिटेन की सरकार ने 16 मई 1806 को फ्रेंच कोस्ट की नाकेबन्दी की थी। उसी के जवाब में नेपोलियन ने 21 नवम्बर 1806 को 'बर्लिन डिक्री' का ऐलान किया जिसके द्वारा ब्रिटेन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर व्यापार-प्रतिबन्ध (Embargo) लगा दिये गये। इसका अन्त 11 अप्रैल 1814 को हुआ जब नेपोलियन ने पहली बार पदत्याग किया।
  • इस प्रतिबन्ध से ब्रिटेन को कोई खास आर्थिक क्षति नहीं हुई। जब नेपोलियन को पता चला कि अधिकांश व्यापार स्पेन और रूस के रास्ते हो रहा है, तो उसने उन दोनों देशों पर आक्रमण कर दिया।
महाद्वीपीय व्यवस्था के परिणाम :
  • उद्देश्य प्राप्ति में असफल, स्वयं नेपोलियन व यूरोप के लिए आत्मघाती साबित हुआ,
  • अनावश्यक युद्ध - ब्रिटेन का माल पुर्तगाली समुद्र तटों से ही यूरोप में चोरी छिपे पहुँचाए जाते थे। पुर्तगाल पर नियंत्रण के लिए स्पेन के साथ एवं रूस के साथ युद्ध में उलझना
महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता के कारण :
  • सक्षम नौसेना का अभाव – तस्करी एवं चोरी छिपे व्यापार को रोकने में असफल
  • यूरोप में वस्तुओं का संकट – फ्रांस के अल्पविकसित कारखाने, मांग की तुलना में काम आपूर्ति
  • इंग्लैण्ड से व्यापार - इंग्लैण्ड में अन्न का अभाव था परन्तु नेपोलियन उसके धन को कम करने के लिए बराबर भारी मूल्य पर अन्न भेजता रहा। अन्य देशों ने इसे छल समझा।
  • इंग्लैण्ड के विश्व भर में फैले उपनिवेश
3.2.5 नेपोलियन का पतन (Fall of Napoleon)
  • महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता
  • स्पेन एवं पुर्तगाल के साथ संघर्ष 1808 में पुर्तगाल को हराया, साथ ही स्पेन को हराकर वहाँ के शासक फर्डिनेण्ड को नजरबंद कर अपने भाई जोसेफ को राजा बनाया, स्पेन में राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार, जनता द्वारा गुरिल्ला युद्ध, बेलन के युद्ध में पराजय, अन्य राष्ट्र भी विद्रोह को तैयार हो गए
  • रूस पर आक्रमण – महाद्वीपीय व्यवस्था के उल्लंघन पर रूस पर आक्रमण, जार ने चतुराई पूर्वक अपनी सेना और रसद लेकर साइबेरिया में शरण ली, नेपोलियन मास्को में आत्मसमर्पण का इंतेजर करता रहा, इसी दौरान ठण्ड, महामारी और भूख से उसके 6 लाख में से 5 लाख सैनिकों की मृत्यु
  • यूरोपीय राष्ट्रों का संयुक्त मोर्चा – 1813 में लिप्जिग के युद्ध में प्रशा, आस्ट्रिया, इंग्लैण्ड, रूस और स्वीडन का नेपोलियन के विरुद्ध गठबंधन
  • निरंतर युद्ध – निरंतर युद्धों की शृंखला से यूरोप में उसने अपने शत्रुओं की सेना तैयार कर ली
  • राष्ट्रवाद का उत्थान – हालैण्ड, स्पेन और इटली को हराकर रिश्तेदारों को सत्ता, राष्ट्रवाद का उदय
  • कमजोर नौसेना – इंग्लैण्ड को प्रत्यक्ष युद्ध में हराने या महाद्वीपीय व्यवस्था लागू करने में असफल
  • व्यक्तिगत दुर्बलताएं - मध्यवर्गीय कुंठा, मित्र बनाने में असफल, भय के कारण सही सलाह का अभाव

3.2.6 वियना कांग्रेस / यूरोपीय व्यवस्था 1815

  • वाटरलू का युद्ध 1815 – [नेपोलियन (फ्रांस) बनाम ब्रिटेन, रूस, प्रशा, आस्ट्रिया, हंगरी] - नेपोलियन की हार - आत्मसमर्पण - सेंट हेलेना द्वीप निर्वासन
  • वियना कांग्रेस (Viena Congress) - यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई चांसलर मेटरनिख ने की।
  • कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था।
  • इस सम्मेलन में यूरोप के कई छोटे-छोटे देश शामिल हुए किन्तु नीति निर्माण के संबंध में चार मुख्य देशों के प्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। ये नेता थे- आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिक, रूस का जार एलेक्जेंडर, इंग्लैंड का विदेश मंत्री लॉर्ड कैसलरे तथा फ्रांसीसी विदेश मंत्री तैलरा
वियना कांग्रेस के समक्ष समस्याएं :
  • फ्रांसीसी क्रांति के उच्च आदर्शों को यूरोप में फैलाने से कैसे रोका जाए ?
  • नेपोलियन द्वारा विजित क्षेत्रों के साथ किस प्रकार की नीति अपनाई जाए ?
  • नेपोलियन का साथ देने वाले देशों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए ?
  • मतैक्य का अभाव - मेटरनिख (आस्ट्रिया) और जार (रूस) प्रतिक्रियावादी थे, तो कैसलरे (इंग्लैण्ड) एवं तैलरा (फ्रांस) उदारवादी। ऐसी स्थिति में फ्रांस के साथ किए जाने वाले बर्ताव को लेकर मतभेद भी कायम था।
वियना कांग्रेस के सिद्धान्त :
  • शक्ति संतुलन का सिद्धान्त (Balance of Power) : फ्रांस के निकटवर्ती राज्यों को विस्तृत क्षेत्र देकर शक्तिशाली बना दिया गया ताकि आवश्यक होने पर वे अपनी सैन्यशक्ति से फ्रांस को दबा सकें।
  • वैधता का सिद्धान्त : इस सिद्धान्त के तहत् पुराने राजवंशों का उद्धार करके उन्हें उनके राज्य फिर से सौंप देने की बात कहीं गई। इस सिद्धान्त के तहत् फ्रांस में वूर्बों वंश को पुनर्स्थापित किया गया।
  • पुरस्कार एवं दण्ड का सिद्धान्त : नेपोलियन के सहायक - दण्ड (जैसे-सैक्स), नेपोलियन के विरूद्ध मित्रराष्ट्रों के सहायक देश - मुआवजा / पुरस्कार।
नई प्रादेशिक व्यवस्था :
  • इंग्लैंड - माल्टा, एलिगोलैंड (उत्तरी सागर) आदि द्वीप मिले तथा फ्रांस के टोबगो, मॉरीसस तथा सेंट लुसिया के द्वीप तथा स्पेन से ट्रिनिडाड क्षेत्रों की प्राप्ति हुई।
  • फ्रांस - सीमाएं क्रांति से पूर्व की स्थिति, युद्ध हर्जाना - 70 करोड़ फ्रैंक, फ्रांस के सीमावर्ती क्षेत्रों से शक्तिशाली राष्ट्रों का निर्माण, ताकि भविष्य में फ्रांस महाद्वीप की शांति को भंग न कर सकें। फ्रांस के राजसिंहासन पर पुनः बूर्वो वंश के लुई 18वें को बैठा दिया गया।
  • जर्मनी - नेपोलियन से पूर्व जर्मनी में पवित्र रोमन साम्राज्य मौजूद था। नेपोलियन ने उसे समाप्त कर राइन संघ का गठन किया और वहां राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ। इस राष्ट्रीयता के प्रसार को रोकने के लिए वहां एक ढीला-ढाला संघ बनाया गया जिसका अध्यक्ष आस्ट्रिया का सम्राट फ्रांसिस बना।
  • आस्ट्रिया – इटली से वेनेसिया तथा लोम्बार्डी , पोलैंड से दक्षिण वेलेंसिया प्राप्त हुआ।
  • इटली - अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त कर दिया गया। इटली वस्तुतः, मेटरनिक के शब्दों में, केवल एक भौगोलिक अभिव्यक्ति बन कर रहा गया। इटली पर आस्ट्रिया का प्रभाव स्थापित।
दास प्रथा का विरोध : 
  • वियना कांग्रेस में दास प्रथा का विरोध किया गया।
अंतर्राष्ट्रीय संस्था का निर्माण : 
  • शांति बनाए रखने के लिए 'यूरोपीय व्यवस्था' (Concert of Europe)
अंतर्राष्ट्रीय संविधान :
  • पहली बार अंतर्राष्ट्रीय संविधान का निर्माण, नदियों में जहाजों का आवागमन, समुद्र का उपयोग तथा राष्ट्रों के बीच पारस्परिक व्यवहार के मुद्दों को व्याख्यायित किया गया।
वियना कांगे्रस की आलोचना :
  • प्रतिक्रियावादी शक्तियों की विजय : राष्ट्रवाद, उदारवाद, जनतंत्र, समानता, स्वतन्त्रता, बंधुत्व जैसी प्रगतिशील विचारधारा को रोकना, यूरोप को यथास्थिति (stand still) में लाने का प्रयास।
  • जनता के इच्छा की अवहेलना : मनमाने तरीके से राज्यों की सीमाओं का निर्धारण।
  • नीतियों में विरोधाभास : वैधता के सिद्धान्त को वहीं लागू किया गया जिनसे बड़े राज्यों के हित में बाधा नहीं पहुंचती थी। इसी प्रकार शक्ति संतुलन की नीति को केवल फ्रांस तक सीमित रखा गया। इंग्लैंड, रूस के संदर्भ में यह नीति लागू नहीं की गई।
वियना कांग्रेस के सकारात्मक पक्ष :
  • वियना कांगे्रस की मुख्य उपलब्धि यह रही कि इसने यूरोप में लगभग 40 वर्षों तक शांति की स्थापना की जिसकी यूरोपवासियों को उस समय सर्वाधिक जरूरत थी। वियना कांग्रेस ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति स्थापित करने की कोशिश की तथा यूरोपीय व्यवस्था की स्थापना कर प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना की जिसकी आधारशिला पर आगे चलकर राष्ट्रसंघ (लीग ऑफ नेशन्स) व संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण हुआ। वियना कांगे्रस में फ्रांस के साथ अपेक्षाकृत न्यायपूर्ण व्यवहार किया गया था और पराजित शक्ति होने के बावजूद उसे कांगे्रस में प्रतिनिधित्व दिया गया, जबकि प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् वर्साय की संधि में पराजित जर्मनी को प्रतिनिधित्व नहीं मिला और संधि के कड़े प्रावधान उस पर थोप दिए गए।
  • निष्कर्षतः कह सकते हैं कि वियना कांगे्रस ने तत्कालिक रूप से यूरोप में शांति स्थापित की। फ्रांस के साथ नरम व्यवहार करने जैसे सकारात्मक कदम उठाए। परन्तु उदारवाद, राष्ट्रवाद जैसी विचारधारा के प्रसार को रोकने का प्रयास कर इतिहास की धारा के विरूद्ध कार्य किया। इस दृष्टि से वियना कांगे्रस प्रतिक्रियावादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती थी।

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