दार्जिलिंग का संकट कब तक ?
Sep 07, 2017
सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध । (खंड-2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।) |
चर्चा में क्यों?
अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग पहाड़ी पर उभरे संकट के करीब तीन महीने बाद भी वहाँ स्थिति अभी तक सुधरी नहीं हैं। पश्चिम बंगाल सरकार और दार्जिलिंग का मुख्य राजनीतिक दल गोरखा जनमुक्ति मोर्चा किसी समाधान पर पहुँचने में विफल रहे हैं। यहाँ ज़ारी अनिश्चितकालीन हड़ताल अपने 11वें सप्ताह में है। अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक हों गई है। जून के दूसरे हफ्ते के बाद से स्कूल और कॉलेज बंद पड़े हुए हैं और सामान्य जिंदगी पीस रही है। बांग्ला भाषा के मुद्दे पर शुरू हुआ यह विरोध दार्जिलिंग और कालीम्पोंग ज़िलों में फैल गया है।
प्रमुख घटनाक्रम
- गोरखालैंड का मुद्दा 1980 के दसक के मध्य से उभरा है।
- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद दार्जिलिंग स्वायत्त परिषद के माध्यम से गोरखा आंदोलन को शांत करने की कोशिश की थी, लेकिन इनकी मांग फिर से उठ गई है।
- दरअसल इस आग को चिंगारी ममता सरकार के उस फैसले से मिली है जिसमें उन्होंने पहली से दसवीं कक्षा तक सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा को अनिवार्य कर दिया था।
- गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इसी फैसले के विरोध के माध्यम से अलग राज्य की मांग के लिये आंदोलन तेज़ करना चाहता है।
दार्जिलिंग का महत्त्व
- दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक खूबसूरत पहाड़ी ज़िला है। पर्यटन के लिहाज़ से यह सबसे अच्छी स्थल है।
- बंगाल के लोगों के लिये दार्जिलिंग का काफी महत्त्व है। यहाँ चाय के बागानों के साथ-साथ दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे भी है, जिसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्ज़ा प्राप्त है।
- दार्जिलिंग की खूबसूरत वादियों से हर साल होने वाले हज़ारों करोड़ की चाय के कारोबार और पर्यटन से होने वाली मोटी आय के कारण बंगाल को दार्जिलिंग का आकर्षण बना रहता है।
- दार्जिलिंग में चलने वाली टॉय ट्रेन भी प्रसिद्ध है। यूनेस्को ने दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे को 1999 में वैश्विक विरासत का दर्ज़ा दिया था।
गोरखों की अलग राज्य की मांग का इतिहास
- गोरखों की अलग राज्य की मांग आज़ादी से भी पुरानी है।
- अंग्रेज़ों ने दार्जिलिंग को सिक्किम से छीनकर बंगाल में विलय किया था, लेकिन सांस्कृतिक, भाषाई और यहाँ तक कि राजनीतिक रूप से बंगाल और दार्जिलिंग में कोई समानता नहीं है।
- गोरखा अपनी देसी पहचान, खान-पान, पहनावे से लेकर संस्कृति तक हर चीज़ में खुद को अलग मानते हैं। इसीलिये बांग्ला भाषा को स्कूलों को अनिवार्य करने के आदेश से गोरखों की भावनाएँ भड़की हुई हैं।
- भारतीय राजनीति में भाषा एक ऐसा मुद्दा रहा है, जिसने कई राज्यों में भाषाई आधार पर अलग राज्य के गठन के लिये आंदोलनों को हवा दी है।
आगे की राह
- इस समस्या का हल दोनों पक्षों द्वारा बैठकर बातचीत के द्वारा निकाला जा सकता है। हड़ताल और विरोध से ऐसी समस्याएँ नहीं सुलझती हैं।
- दार्जिलिंग में स्थायी शांति तभी मिल सकती है, जब वहाँ के निवासियों को अधिक स्वायत्ता प्रदान की जाएगी और कोई भी अनिवार्यता थोपने से पहले उनकी भी राय सुनी जाएगी।
स्रोत : द हिंदू
Source title : An elusive peace
Sourcelink:http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-opinion/an-elusive-peace/article19633141.ece
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