NSG, MTCR, NPT, CTBT क्या है


NSG, NPT, MTCR, CTBT क्या है?














NUCLEAR NON-PROLIFERATIONTREATY
     परमाणु प्रसार संधि

  परमाणु अप्रसार संधि या एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है.
Øइसे जब 1968 मे बनाया गया तो इसका उद्देश्य था परमाणु हथियारों को उन पाँच देशों तक सीमित रखना जो यह स्वीकार करते थे कि उनके पास ऐसे हथियार हैं.
Øयह पाँच देश थे-अमरीका, सोवियत संघ (आज का रूस), चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस.
Øहालाँकि चीन और फ़्रांस ने इस संधि पर 1992 तक हस्ताक्षर नहीं किए.
Øयह पाँच 'परमाणु हथियार संपन्न' राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं और इस संधि के तहत इस बात से बंधे हुए है कि यह 'ग़ैर-परमाणु' देशों को न तो यह हथियार देंगे और न ही इन्हें हासिल करने में उनकी मदद करेंगे.
 एजेंसी की निगरानी
Øअब तक कुल 191 देशों ने इस संधि पर दस्तख़त किए हैं और उनमें से कोई भी इससे बाहर नहीं निकला है.
Øपरमाणु ऊर्जा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए विकसित कर सकते हैं. लेकिन वह भी वियेना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षकों की देखरेख में होगा.
संधि से अलग
§भारत, पाकिस्तान और इसराइल ने इस पर दस्तख़त नही किए हैं और समझा जाता है कि उनके पास परमाणु क्षमता है.
§भारत लंबे समय से इस परमाणु एकाधिकार की आलोचना करता आ रहा है और 1974 में उसने, जैसाकि सरकार का कहना था, शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया.
§§इस संधि की कई उपलब्धियाँ रहीं. दक्षिण अफ्रीका और लगभग समूचे लातिन अमरीका ने परमाणु हथियार से संबद्ध सभी गतिविधयों का त्याग कर दिया है.
§दक्षिण अफ्रीका ने 1980 के दशक में गुप्त रूप से हथियार बनाए लेकिन 1991 में उसने उन्हें नष्ट कर दिया और वह एनपीटी का सदस्य बन गया.
§उसी वर्ष खाड़ी युद्ध के बाद परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने पाया कि इराक़ इस संधि का उल्लंघन कर रहा है.
§इस समय तक निरीक्षकों को केवल वहीं जाने का अधिकार था जिन स्थानों के बारे में संधि पर हस्ताक्षर करने वालों ने ख़ुद बताया था.
§लेकिन इराक़ की स्थिति सामने आने के बाद इसके अधिकार बढ़ा दिए गए.
§और इन नए अधिकारों की वजह से ही 1993 में उत्तर कोरिया के साथ यह संकट पैदा हुआ.
§इस कम्युनिस्ट राष्ट्र ने, जिसने 1985 में इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे, अब धमकी दी कि वह इससे बाहर हो जाएगा.
§NPT पर क्यों हस्ताक्षर नही करना चाहता भारत ?
भारत यदि एनपीटी पर हस्ताक्षर करता है तो उसे अपने पास उपलब्ध सभी परमाणु हथियार और परमाणु तकनीक छोड़ने पड़ेंगे। साथ हीCTBT की शर्तानुसार वह भविष्य में परमाणु परिक्षण भी नही कर पायेगा। अपने पड़ोसी देशो से लगातार बढ़ रहे कलह और प्रतिद्वंदिता और अशांत व्यवहार के चलते भारत इस तरह के कदम उठाने से पीछे हट रहा है।

NUCLEAR SUPPLIERS GROUP

रमाणु पूर्तिकर्ता मूह


§क्या है एनएसजी?  भारत के पहले परमाणु परीक्षण के जवाब में NSG सन् 1974 मेंस्‍थापना हुई। यह 48 देशों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और सदस्य देशों द्वारा मिलकर परमाणु संयंत्र के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन कार्य पर जोर देना है. परमाणु सामग्री की केवल शांतिपूर्ण काम के लिए आपूर्ति की जाती है.    इसमें विश्व के 48 देश शामिल हैजिसमें से 43देश NPT पर हस्ताक्षर कर चुके है। भारत नेNPT पर हस्ताक्षर नही किये है। इसी वजह से NSG में भारत की सदस्यता का विरोध चीन,आयरलैंड और तुर्की जैसे देश कर रहे हैं ।जबकि इसमें शामिल एक देश ऐसा भी है जिसनेNPT पर हस्ताक्षर नहीं किये है लेकिन फिर भी फ़्रांस को Nuclear Suppliers Groupसमूह में शामिल कर लिया गया |      एनएसजी में शामिल होने को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप ने कहा था कि फ्रांस बिना एनपीटी साइन किए एनएसजी का सदस्य बना था। इस पर चीन भारत के रुख को खारिज करते हुए कहा था कि फ्रांस एनएसजी का संस्थापक सदस्य है और ऐसे में उसकी सदस्यता को स्वीकार किए जाने का सवाल कहां पैदा होता है।
§NSG सदस्यता के क्या है फायदे ?
न्यूक्लियर मेडिसिन व न्यूक्लियर पावर प्लांट लगानें की तकनीक मिल पाएगी।
§भारत परमाणु से जुड़ी सारी तकनीक और यूरेनियम सदस्य देशों से बिना किसी समझौते के हासिल कर सकेगा. इससे भारत में विकास दर में खासी बढ़ोतरी होगी। साथ ही भारत की ऊर्जा जरूरते पूरी होगी।
§भारत में दुनिया का हर छठा व्यक्ति रहता है. लेकिन दुनिया के कुल उर्जा उत्पादन का महज 2 से 3 फीसदी यहां पैदा होता है भारत अपनी जरुरत का 40% ईंधन स्वच्छ व दोबारा इस्तेमाल की जानें वाली न्यूक्लियर तकनीक से हासिल कर पायेगा। साथ ही जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता में भी कमी आएगी।
§आधुनिक परमाणु तकनीक मिलनें पर भारत भी न्यूक्लियर पावर इक्विप्मेंट का व्यवसायीकरण कर सकेगा।
§भारतदूसरें देशों जैसे श्रीलंका व बांग्लादेश को शांतिपूर्ण कामों के लिए परमाणु तकनीक बेच सकेगा जिससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा।
§वीटो का इस्तेमाल वह नए सदस्य को ग्रुप में शामिल करने के लिए कर सकते हैं.
§सदस्य बनने के बाद भारत की अंतरराष्ट्रीय साख में वृद्धि होगी.
§देश मे मौजूदा वक्त में शहरीकरण बढ़ा है जिसके बढ़ने के बाद लोगों को ऊर्जा की खपत की जरुरतों को पूरा करने में यह राह कारगर साबित होगा. भारत के ऊर्जा संकट को खत्म करने और तरक्क़ी की तरफ जाने का यह एक सफल प्रयोग साबित होगा और अब तक भविष्य को लेकर इसकी जो समस्यायें थी, इस संगठन से जुड़कर उसपर निजात पाया जा सकता है.
§भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ परमाणु करार किया है। ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ परमाणु करार की बातचीत चल रही है। फ्रांसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं अमेरिकी कंपनियां गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में है। परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी।
§जब 1974 में यह ग्रुप बना था तब इसमे महज 7 देश थे – कनाडा, पश्चिम जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका. बाकी देशों को धीरे-धीरे इस ग्रुप में जगह मिलती रही है.
§वर्तमान सदस्य देश हैं ARGENTINA, AUSTRALIA, AUSTRIA, BELARUS, BELGIUM, BRAZIL, BULGARIA, CANADA, CHINA, CROATIA, CYPRUS, CZECH REPUBLIC, DENMARK, ESTONIA, FINLAND, FRANCE, GERMANY, GREECE, HUNGARY, ICELAND, IRELAND, ITALY, JAPAN, KAZAKHSTAN, REPUBLIC OF KOREA, LATVIA, LITHUANIA, LUXEMBOURG, MALTA, MEXICO, NETHERLANDS, NEW ZEALAND, NORWAY, POLAND, PORTUGAL, ROMANIA, RUSSIAN FEDERATION, SERBIA, SLOVAKIA, SLOVENIA, SOUTH AFRICA, SPAIN, SWEDEN, SWITZERLAND, TURKEY, UKRAINE, UNITED KINGDOM, and UNITED STATES


MISILE TECHNOLOGYCONTROL REGIME

मिसाइल टेक्नोलॉजीण्ट्रोल


रेजिम

§क्या है MTCR?
एमटीसीआर अप्रैल 1987 में गठित 35 देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका काम दुनिया भर में मिसाइल या मानवरहित हथियार द्वारा रासायनिक, जैविक, नाभिकीय हथियारों के प्रसार पर नियंत्रण रखना है. हालांकि इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग कोई भी देश केवल अपनी सुरक्षा के लिए कर सकता है.
  एमटीसीआर अपने सदस्यों से अनुरोध करती है कि वह अपने मिसाइल निर्यात और 500 किग्राभार कम से कम 300 किमी तक ले जाने में सक्षम या सामूहिक विनाश के किसी भी प्रकार के हथियार की आपूर्ति करने में सक्षम संबंधित प्रौद्योगिकी को सीमित करें।
§भारत इसका 35 वां सदस्य बना,चीन और पाकिस्तान नहीं हैं सदस्य
§एमटीसीआर का सदस्य होने का मतलब एमटीसीआर में शामिल होने के बाद भारत को अपनी मिसाइल तकनीक व प्रक्षेपण से जुड़ी हर जानकारी सदस्य देशों को देनी होगी. सदस्य बनने के बाद भारत के लिए दूसरे देशों से मिसाइल तकनीक हासिल करना आसान हो जाएगा लेकिन अगर भारत किसी दूसरे देश को इस तरह की कोई तकनीक बेचता है या उसका कारोबार करता है तो उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्य देशों को देनी होगी.
MTCR से भारत को फ़ायदा
1. भारत अमेरिका से मानवरहित ड्रोन ख़रीद पाएगा ये वही विमान हैं जिनका अमेरिका इस समय उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और अफगानिस्तान के इस्लामिक आतंकियों के खात्मे में इस्तेमाल कर रहा है।
2. अमेरिका से ख़रीद सकता है प्रिडेटर ड्रोन
3. ब्रह्मोस जैसी मिसाइल बेच सकेगा
4. 
NSG में भारत के दावे को मज़बूती         5.भारत उच्‍चस्‍तरीय मिसाइल तकनीक खरीद सकेगा।                         6. भारत अभी रूस के साथ मिलकर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइज ‘ब्रहमोस’ बनाता है ताकि उसे अन्‍य देशों को बेचा जा सके।      7. मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा
§MTCR का सदस्‍य बनने पर भारत को कुछ नियमों का पालन करना पड़ेगा जैसे अधिकतम 300 किलोमीटर से कम रेंज वाली मिसाइल बनाना, ताकि हथियारों की होड़ को रोका जा सके।


COMPREHENSIVE TEST BAN TREATY

व्यापक परमाणुरीक्षण 

प्रतिबंध संधि


  CTBT परमाणु परीक्षण पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करती है,
§संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के द्वारा 10 सितंबर, 1996 को पारित हुई। 24 सितंबर, 1996 से इस संधि पर हस्ताक्षर शुरू हुए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका इस पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश बना, यद्यपि इसने अभी तक इसे अनुमोदित नहीं किया है।
§सीटीबीटी को प्रभाव में लाने के लिये उन सभी 44 देशों की संधि पर हस्ताक्षर करना तथा उसे अनुमोदित करना आवश्यक है, जिनके पास नाभिकीय रिएक्टर हैं (अनुच्छेद IV)। इन 44 देशों में भारत, पाकिस्तान और इजरायल भी सम्मिलित हैं। संधि के अनुसार अगर हस्ताक्षर कार्यक्रम प्रारंभ होने के 3 वर्षों के भीतर सभी नाभिकीय रिएक्टर संपन्न देश संधि को अनुमोदित नहीं करते हैं, तो सीटीबीटी संगठन. सदस्य देशों का सम्मेलन (सीओएसपी) आयोजित करेगा। सीओएसपी का आयोजन उन देशों के आग्रह पर होगा, जिन्होंने पहले ही अनुमोदन-प्रपत्र प्रस्तुत कर दिया है। लेकिन निर्धारित समय-सीमा, अर्थात् 24 सिंतबर 1999, तक इनमें से एक भी शर्त पूरी नहीं हुई, क्योंकि तब तक मात्र 26 देशों ने ही संधि पर हस्ताक्षर करके उसे अनुमोदित किया था।
§जनवरी 1994 में जेनेवा में आयोजित निरस्त्रीकरण सम्मेलन (सीडी) में परमाणु परीक्षण के प्रतिबंध पर चर्चा शुरू हुई [यद्यपि सीडी ( 1979 ) संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 22 के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र महासभा का सहायक अंग नहीं है, तथापि, यह उससे घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है] भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सीडी के मूल सह-प्रायोजकों में थे। मई 1995 में एनपीटी के स्थायी और अनिश्चित विस्तार के बाद कुछ सदस्यों, विशेषकर भारत, ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर को पूर्ण निरस्त्रीकरण की समयबद्ध योजना के साथ जोड़ दिया है। ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि एनपीटी निरस्त्रीकरण से निपटने में सफल नहीं हुई, जो कि इसके मौलिक लक्ष्यों में से एक है। इसके दो अन्य लक्ष्य हैं-परमाणु अप्रसार और नाभिकीय ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग।
§दो वर्षों तक चली सघन वार्ताओं के बाद 20 अगस्त, 1996 को सीडी सम्पन्न हुआ। चर्चा के दौरान सीटीबीटी के अनेक प्रावधानों पर विरोध व्यक्त किया गया। प्रारूप-पत्र (draft text) के प्रावधानों पर सहमति के अभाव में सीडी के पास महासभा की सिफारिश करने के लिये कोई दस्तावेज नहीं था। लेकिन सीडी में अवरुद्ध किये गये प्रारूप पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मुहर लगाने के लिए प्रारूप को सूचना दस्तावेज(information document) के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिस पर आस्ट्रेलिया ने 120 देशों के समर्थन के साथ एक प्रस्ताव जारी किया, जिसमें महासभा से दस्तावेज के स्वीकार करने के लिये तथा महासचिव से उसे सदस्य देशों के द्वारा हस्ताक्षर के लिये खोलने का आग्रह किया गया। इस प्रकार अवरुद्ध सीटीबीटी संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यक्रम में सम्मिलित हो गया। इस प्रक्रिया में सीडी की 17 वर्ष पुरानी कार्यप्रणाली की सम्पूर्ण व्यवस्था आम सहमति से समाप्त हो गई।
  सीटीबीटी के कुछ प्रावधान निम्नांकित हैं-
§संधि सभी प्रकार के परमाणु अस्त्र परीक्षण विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाती है।
§संधि का उल्लंघन रोकने के लिये एक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली स्थापित की जाएगी।
§1,000 टन क्षमता वाले परम्परागत विस्फोटों से अधिक शक्तिशाली विस्फोट (भूमिगत, वायुमंडल या अंतर्जलीय) का पता लगाने के लिये 20 स्टेशनों वाला एक नेटवर्क स्थापित किया जायेगा।
§अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण प्रणाली या किसी विशेष देश की निगरानी (लेकिन जासूसी नहीं) से प्राप्त सूचना के आधार पर कोई भी देश विस्फोट की सत्यता स्थापित करने के लिये निरीक्षण का आग्रह कर सकता है। निरीक्षण के आवेदन के लिये 51 सदस्यीय कार्यकारी परिषद के 30 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है 
§जब तक अनुच्छेद 2 में निर्दिष्ट सम्मेलन या ऐसा कोई अन्य सम्मेलन कोई अन्यथा निर्णय नहीं लेता है, तब तक यह प्रक्रिया हस्ताक्षर अभियान शुरू होने की प्रत्येक वर्षगांठ पर दुहरायी जायेगी और तब तक जारी रहेगी जब तक यह संधि प्रभावी नहीं हो जाती है।
§§सीटीबीटी संगठन ने 27 अक्टूबर, 1999 को विएना में सीओएसपी का आयोजन किया। इसने विएना घोषणा को अपनाया, जो संधि को अनुमोदित करने वाले 26 देशों के द्वारा शीर्षतम राजनीतिक स्तर पर प्रगतिशील सहयोग प्रपत्र की आशा करता है। अधिकांश सदस्यों ने विश्वास व्यक्त किया कि संधि को प्रभाव में लाने के लिये सीओएसपी की पुनः आवश्यकता नहीं होगी। सर्वसम्मति से अपनाई गई विएना घोषणा का श्रेय जापान और इंग्लैण्ड के एक वर्ष के अथक प्रयास को जाता है। घोषणा ने संधि को अनुमोदित करने वाले 26 देशों की ओर से अन्य 18 देशों से आग्रह किया कि वे शीघ्रातिशीघ्र संधि पर हस्ताक्षर करें तथा उसका अनुमोदन करें। इसने पाकिस्तान और भारत को भी प्रेरित किया कि वे संधि को प्रभाव में लाने में बाधक न होने का अपना वचन पूरा करें। तीन परमाणु सम्पन्न देशों, जिन्होंने संधि की अनुमोदित नहीं किया था, से भी अनुमोदन की प्रक्रिया में गति लाने के लिये कहा गया।
 सीटीबीटी की कुछ प्रमुख त्रुटियां है-
§पांच परमाणु हथियार-सम्पन्न देशों द्वारा सभी परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के संबंध में कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है (भारत ने दस वर्षीय समय-सीमा का सुझाव दिया);
§ईआईएफ धारा अस्वीकार्य है;
§पांच परमाणु हथियार-सम्पन्न देशों को स्पष्ट रूप से लाभ की स्थिति में रखा गया है क्योंकि संधि से अलग होने की स्थिति में वे अपने हथियारों का आध्रुनिकीकरण कर सकते हैं;
§संधि के अंतर्गत कोई भी सदस्य देश अन्य सदस्यों के समर्थन के बिना भी संधि से अलग हो सकता है तथा पांच परमाणु-सम्पन्न देश अपने डिजाइन दल और प्रयोगशालाओं को जारी रख सकते हैं;
§संधि व्यापक नहीं है, यह मात्र नाभिकीय अस्त्र परीक्षण पर प्रतिबंध लगाती है; सदस्य देश कम्प्यूटर-अनुरूपित परीक्षणों के माध्यम से अपनी शस्त्र प्रणाली को और सम्पन्न बना सकते हैं;
§अध:विवेचनात्मक परीक्षणों (subcritical tests) को बहुत अस्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है,
§संधि के प्रभावी होने के बाद उसका उल्लंघन करने वाले सदस्यों को दण्डित करने की प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है।



for more details log on to http://yesucan.in/
Share on Google Plus

About Unknown

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

1 comments: